दिन

दिन गुज़रते हैं

दिन कैसे गुज़रते हैं

यूँ तो सब ही दिन गुज़र जाते हैं

जो ज़िंदा हैं

वो तो गुज़ारते हैं

ज़लील होते हुए

कभी भूक के हाथों

कभी चारों तरफ़ फैली उन वबाओं

की सरपरस्ती में

जो ख़ुदा बन जाती हैं

सफ़्फ़ाक बे-रहमी के लिबास में

घरों की मुंडेरों पर चलती हैं

छलावों की तरह

चबाती हैं माओं के कलेजे

चीरती हैं नन्हे बच्चों का दिल

अपनी किसी ज़ियाफ़त में पेश करने के लिए

अपनी ही जैसी बलाओं को

नहीं रोक सकता कोई उन्हें

वो भी जो उन का ख़ुदा है

वो बुलाते हैं अपने ख़ुदा को भी

इस ज़ियाफ़त में

शायद वो भी इंसानी गोश्त का

शौक़ीन है

और उकसाता है उन्हें

जब जब उसे इश्तिहा होती है

उन का ख़ुदा

सिर्फ़ उन का ख़ुदा है

उन का नहीं

जिन के कलेजे चबाए जा रहे हैं

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Din In Hindi By Famous Poet Azra Abbas. Din is written by Azra Abbas. Complete Poem Din in Hindi by Azra Abbas. Download free Din Poem for Youth in PDF. Din is a Poem on Inspiration for young students. Share Din with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.