प्रकाश Poetry (page 15)

नुमायाँ और भी रुख़ तेरी बे-रुख़ी में रहे

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हो दिल-लगी में भी दिल की लगी तो अच्छा है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

हमें चार सम्त की दौड़ में वही गर्द-ए-बाद-ए-सदा मिला

सज्जाद बाक़र रिज़वी

ब-क़द्र-ए-हौसला कोई कहीं कोई कहीं तक है

सज्जाद बाक़र रिज़वी

इक दर्द सब के दर्द का मज़हर लगा मुझे

सज्जाद बाबर

वो पल ये घड़ी

साजिदा ज़ैदी

नज़र को तीर कर के रौशनी को देखने का

साजिद हमीद

चलो दुनिया से मिलना छोड़ देंगे

साजिद अमजद

एक नज़्म

साइमा ख़ैरी

सर-ए-ख़याल मैं जब भूल भी गई कि मैं हूँ

साइमा असमा

ख़ाली हाथों में मोहब्बत बाँटती रह जाऊँगी

साइमा असमा

पहले जो हम चले तो फ़क़त यार तक चले

साइम जी

दयार-ए-हब्स में बुझते हुए चराग़ों को

साइम जी

अब क्या गिला करें कि मुक़द्दर में कुछ न था

सैफ़ ज़ुल्फ़ी

बढ़ी है ख़ाना-ए-दिल में कुछ और तारीकी

साहिर सियालकोटी

जो तिरे पहलू में गुज़री ज़िंदगी अच्छी लगी

साहिर शेवी

ख़ुदा-ए-बर्तर तिरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है

साहिर लुधियानवी

एक शाम

साहिर लुधियानवी

ऐ शरीफ़ इंसानो

साहिर लुधियानवी

दुनिया में हर क़दम पे हमें तीरगी मिली

साहिर होशियारपुरी

मुझे मिला वो बहारों की सरख़ुशी के साथ

सहबा अख़्तर

जिसे लिख लिख के ख़ुद भी रो पड़ा हूँ

सहबा अख़्तर

जिसे लिख लिख के ख़ुद भी रो पड़ा हूँ

सहबा अख़्तर

असनाम-ए-माल-ओ-ज़र की परस्तिश सिखा गई

सहबा अख़्तर

असनाम-ए-माल-ओ-ज़र की परस्तिश सिखा गई

सहबा अख़्तर

अँधेरे से ज़ियादा रौशनी तकलीफ़ देती है

सहर महमूद

तारीकियों का हिसाब

सहर अंसारी

बुझ रहे हैं चराग़-ए-दैर-ओ-हरम

सहाब क़ज़लबाश

क्यूँ हर उरूज को यहाँ आख़िर ज़वाल है

सग़ीर मलाल

ख़ाक में मिलती हैं कैसे बस्तियाँ मालूम हो

सग़ीर मलाल

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