प्रकाश Poetry (page 14)

रौशनी तक रौशनी का रास्ता कह लीजिए

समद अंसारी

ऐ जान-ए-जाँ तिरे मिज़ाज का फ़लक भी ख़ूब है

सलमा शाहीन

तमाम उम्र की तन्हाइयों पे भारी थी

सलीम शुजाअ अंसारी

मुझे जब भी कभी तेरी कमी महसूस होती है

सलीम शुजाअ अंसारी

रौशन सुकूत सब उसी शो'ला-बयाँ से है

सलीम शाहिद

मिरी रौशनी तिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल से मुख़्तलिफ़ तो नहीं मगर

सलीम कौसर

पुराने साहिलों पर नया गीत

सलीम कौसर

वो जो हम-रही का ग़ुरूर था वो सवाद-ए-राह में जल-बुझा

सलीम कौसर

सफ़र की इब्तिदा हुई कि तेरा ध्यान आ गया

सलीम कौसर

मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है

सलीम कौसर

चराग़-ए-याद की लौ हम-सफ़र कहाँ तक है

सलीम कौसर

आब ओ हवा है बरसर-ए-पैकार कौन है

सलीम कौसर

हर क़दम आगही की सम्त गया

सलीम फ़िगार

देख माज़ी के दरीचों को कभी खोला न कर

सलीम फ़राज़

आग सी बरसती है सब्ज़ सब्ज़ पत्तों से

सलीम बेताब

वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई

सलीम अहमद

इक पतिंगे ने ये अपने रक़्स-ए-आख़िर में कहा

सलीम अहमद

वो मिरे दिल की रौशनी वो मिरे दाग़ ले गई

सलीम अहमद

'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का

सलीम अहमद

लम्हा-ए-रफ़्ता का दिल में ज़ख़्म सा बन जाएगा

सलीम अहमद

कोई सितारा-ए-गिर्दाब आश्ना था मैं

सलीम अहमद

जो दिल में हैं दाग़ जल रहे हैं

सलीम अहमद

दिल के अंदर दर्द आँखों में नमी बन जाइए

सलीम अहमद

ड्राइंग-रूम

सलाम मछली शहरी

थोड़ी देर ऐ साक़ी बज़्म में उजाला है

सलाम मछली शहरी

सरहद-ए-फ़ना तक भी तीरगी नहीं आई

सलाम मछली शहरी

बन गई है मौत कितनी ख़ुश-अदा मेरे लिए

सलाम मछली शहरी

शम्अ को रौशनी का अपने बहुत दावा है

सख़ी लख़नवी

यही सुनते आए हैं हम-नशीं कभी अहद-ए-शौक़-ए-कमाल में

सज्जाद बाक़र रिज़वी

वो घिर के आया घटाओं की तीरगी की तरह

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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