प्रकाश Poetry (page 13)

यूँ एहतिमाम-ए-रद्द-ए-सहर कर दिया गया

सत्तार सय्यद

साए का इज़्तिराब

सरवत ज़ेहरा

गुम-शुदा लम्हे की तलाश

सरवत ज़ेहरा

यार की महफ़िल सजी मय की महक छाने लगी

सरवर नेपाली

ये जो रौशनी है कलाम में कि बरस रही है तमाम में

सरवत हुसैन

यहाँ मज़ाफ़ात में

सरवत हुसैन

रात बाग़ीचे पे थी और रौशनी पत्थर में थी

सरवत हुसैन

कभी तेग़-ए-तेज़ सुपुर्द की कभी तोहफ़ा-ए-गुल-ए-तर दिया

सरवत हुसैन

पाते रहे ये फ़ैज़ तिरी बे-रुख़ी से हम

सरताज आलम आबिदी

किस शख़्स की तलाश में सर फोड़ती रही

सरमद सहबाई

ये मैं ने माना कि पहरा है सख़्त रातों का

सरफ़राज़ नवाज़

लड़खड़ाता हूँ कभी ख़ुद ही सँभल जाता हूँ

सरफ़राज़ नवाज़

आरज़ूओं की रुतें बदले ज़माने हो गए

सरफ़राज़ दानिश

उसी का जल्वा-ए-ज़ेबा है चाँदनी क्या है

सरीर काबिरी

ज़िंदगी इक इम्तिहाँ है इम्तिहाँ का डर नहीं

सरदार अंजुम

नए चराग़ जला याद के ख़राबे में

साक़ी फ़ारुक़ी

दुनिया पे अपने इल्म की परछाइयाँ न डाल

साक़ी फ़ारुक़ी

आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो

साक़ी फ़ारुक़ी

हमला-आवर कोई अक़ब से है

साक़ी फ़ारुक़ी

हैं सेहर-ए-मुसव्विर में क़यामत नहीं करते

साक़ी फ़ारुक़ी

दर्द के इताब ले दोस्त उसे शुमार कर

साक़ी फ़ारुक़ी

दामन में आँसुओं का ज़ख़ीरा न कर अभी

साक़ी फ़ारुक़ी

छुप के मिलने आ जाए रौशनी की जुरअत क्या

साक़ी फ़ारुक़ी

बदन चुराते हुए रूह में समाया कर

साक़ी फ़ारुक़ी

आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो

साक़ी फ़ारुक़ी

मंज़िलें लाख कठिन आएँ गुज़र जाऊँगा

साक़ी अमरोहवी

कुछ भी समझ न पाओगे मेरे बयान से

संजय मिश्रा शौक़

गई नहीं तिरे ज़ुल्म-ओ-सितम की ख़ू अब तक

संजय मिश्रा शौक़

ये रस्ता

समीना राजा

वो आरज़ू कि दिलों को उदास छोड़ गई

समद अंसारी

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