निर्माता Poetry (page 4)

नदी किनारे जो नग़्मा-सरा मलंग हुए

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

उस संग-ए-आस्ताँ पे जबीन-ए-नियाज़ है

ज़ौक़

सोज़-ए-दुआ से साज़-ए-असर कौन ले गया

शाज़ तमकनत

शब-ए-वा'दा कह गई है शब-ए-ग़म दराज़ रखना

शाज़ तमकनत

छोड़ दूँ शहर तिरा छोड़ दूँ दुनिया तेरी

शाज़ तमकनत

सब्र-ओ-क़रार टूट गया इज़्तिराब से

शायान क़ुरैशी

हुई या मुझ से नफ़रत या कुछ इस में किब्र-ओ-नाज़ आया

शौक़ क़िदवाई

औरत

शौकत परदेसी

मिरे लिए मिरी पर्वाज़ के लिए कम है

शौकत मेहदी

जो अपनी चश्म-ए-तर से दिल का पारा छोड़ जाता है

शारिब मौरान्वी

लग़्ज़िश पा-ए-होश का हर्फ़-ए-जवाज़ ले के हम

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

हर जल्वा-ए-हुस्न बे-वतन है

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

वो अक्स मुझ में जुनूँ-साज़ रक़्स करने लगा

शमशीर हैदर

दुनिया-ए-मोहब्बत में हम से हर अपना पराया छूट गया

शमीम जयपुरी

नीले पीले सियाह सुर्ख़ सफ़ेद सब थे शामिल इसी तमाशे में

शमीम हनफ़ी

जो शख़्स मुद्दतों मिरे शैदाइयों में था

शकीला बानो

उन की तस्वीर देख कर

शकील बदायुनी

मुझे भूल जा

शकील बदायुनी

कहाँ है आ जा

शकील बदायुनी

ये तमाम ग़ुंचा-ओ-गुल मैं हँसूँ तो मुस्कुराएँ

शकील बदायुनी

मेरी बर्बादी को चश्म-ए-मो'तबर से देखिए

शकील बदायुनी

दिल मरकज़-ए-हिजाब बनाया न जाएगा

शकील बदायुनी

क्या चीज़ है ये सई-ए-पैहम क्या जज़्बा-ए-कामिल होता है

शकेब जलाली

ख़िरद फ़रेब-ए-नज़ारों की कोई बात करो

शकेब जलाली

गले मिला न कभी चाँद बख़्त ऐसा था

शकेब जलाली

अपने रोज़ ओ शब का आलम कर्बला से कम नहीं

शहज़ाद क़मर

सोचिए गर उसे हर-नफ़स मौत है कुछ मुदावा भी हो बे-हिसी के लिए

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

सोचिए गर उसे हर नफ़स मौत है कुछ मुदावा भी हो बे-हिसी के लिए

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

तिरी तलाश तो क्या तेरी आस भी न रहे

शहज़ाद अहमद

फ़ज़ा-ए-मय-कदा बे-रंग लग रही है मुझे

शहरयार

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