सबसे Poetry (page 121)

मेरे पास क्या कुछ नहीं

अबरार अहमद

न घर सुकून-कदा है न कारख़ाना-ए-इश्क़

आबिद वदूद

चाँद से अपनी यारी थी

आबिद मुनावरी

निकाल लाए हैं सब लोग उस के अक्स में नक़्स

आबिद मलिक

मियाँ ये इश्क़ तो सब टूट कर ही करते हैं

आबिद मलिक

था मुख़्तसर वजूद जसीम-ओ-जरी न थी

आबिद काज़मी

जो अपने आप को सब कुछ समझ ले

आबिद अख़्तर

मैं ने जो कुछ भी लिक्खा है

अब्दुस्समद ’तपिश’

ताज़ा-दम जवानी रख

अब्दुस्समद ’तपिश’

जिस्म के मर्तबान में क्या है

अब्दुस्समद ’तपिश’

देख कर मेरी अना किस दर्जा हैरानी में है

अब्दुस्समद ’तपिश’

अगर वो बे-अदब है बे-अदब लिख

अब्दुस्समद ’तपिश’

ये मत समझ कि तिरे साथ कुछ नहीं करेगा

अब्दुर्राहमान वासिफ़

मेज़ क़लम क़िर्तास दरीचा सन्नाटा

अब्दुर्राहमान वासिफ़

वो सो रहा है ख़ुदा दूर आसमानों में

अब्दुर्रहीम नश्तर

सफ़ेद-पोश दरिंदों ने गुल खिलाए थे

अब्दुर्रहीम नश्तर

वादा-ए-वस्ल है लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार उठा

अब्दुल्लाह कमाल

उस की जाम-ए-जम आँखें शीशा-ए-बदन मेरा

अब्दुल्लाह कमाल

समुंदर पार आ बैठे मगर क्या

अब्दुल्लाह जावेद

नंगे पाँव की आहट थी या नर्म हवा का झोंका था

अब्दुल्लाह जावेद

कभी प्यारा कोई मंज़र लगेगा

अब्दुल्लाह जावेद

इक सैल-ए-बे-पनाह की सूरत रवाँ है वक़्त

अब्दुल्लाह जावेद

अश्क ढलते नहीं देखे जाते

अब्दुल्लाह जावेद

शराब लाल-ए-लब-ए-दिल-बराँ है मुझ कूँ मुबाह

अब्दुल वहाब यकरू

मिरा दिल मुब्तला है झाँवली का

अब्दुल वहाब यकरू

अगर वो गुल-बदन दरिया नहाने बे-हिजाब आवे

अब्दुल वहाब यकरू

साकिन है कोई और वतन और किसी का

अब्दुल वहाब सुख़न

नई ग़ज़ल का नई फ़िक्र-ओ-आगही का वरक़

अब्दुल वहाब सुख़न

मोहब्बत का जिसे इरफ़ाँ नहीं है

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

क्या क्या सुपुर्द-ए-ख़ाक हुए नामवर तमाम

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

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