सबसे Poetry (page 120)

मेहनत से मिल गया जो सफ़ीने के बीच था

अबु तुराब

तसव्वुरात में इन को बुला के देख लिया

अबु मोहम्मद वासिल

जबीन-ए-शौक़ पर कोई हुआ है मेहरबाँ शायद

अबु मोहम्मद वासिल

दिल में उन का ख़याल आता है

अबु मोहम्मद वासिल

साथ मेरे तेरे जो दुख था सो प्यारे ऐश था

आबरू शाह मुबारक

क्यूँ न आ कर उस के सुनने को करें सब यार भीड़

आबरू शाह मुबारक

इश्क़ की सफ़ मनीं नमाज़ी सब

आबरू शाह मुबारक

इक अर्ज़ सब सीं छुप कर करनी है हम कूँ तुम सीं

आबरू शाह मुबारक

दिवाने दिल कूँ मेरे शहर सें हरगिज़ नहीं बनती

आबरू शाह मुबारक

याद-ए-ख़ुदा कर बंदे यूँ नाहक़ उम्र कूँ खोना क्या

आबरू शाह मुबारक

क़यामत राग ज़ालिम भाव काफ़िर गत है ऐ पन्ना

आबरू शाह मुबारक

पलंग कूँ छोड़ ख़ाली गोद सीं जब उठ गया मीता

आबरू शाह मुबारक

निपट ये माजरा यारो कड़ा है

आबरू शाह मुबारक

नाज़नीं जब ख़िराम करते हैं

आबरू शाह मुबारक

नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा

आबरू शाह मुबारक

क्यूँ बंद सब खुले हैं क्यूँ चीर अटपटा है

आबरू शाह मुबारक

क्या शोख़ अचपले हैं तेरे नयन ममोला

आबरू शाह मुबारक

कहो तुम किस सबब रूठे हो प्यारे बे-गुनह हम सीं

आबरू शाह मुबारक

कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया

आबरू शाह मुबारक

जलते हैं और हम सीं जब माँगते हो प्याला

आबरू शाह मुबारक

जाल में जिस के शौक़ आई है

आबरू शाह मुबारक

हुस्न पर है ख़ूब-रूयाँ में वफ़ा की ख़ू नहीं

आबरू शाह मुबारक

गरचे इस बुनियाद-ए-हस्ती के अनासिर चार हैं

आबरू शाह मुबारक

देखो तो जान तुम कूँ मनाते हैं कब सेती

आबरू शाह मुबारक

चंचलाहट में तू ममोला है

आबरू शाह मुबारक

बहार आई गली की तरह दिल खोल

आबरू शाह मुबारक

आया है सुब्ह नींद सूँ उठ रसमसा हुआ

आबरू शाह मुबारक

आशिक़ बिपत के मारे रोते हुए जिधर जाँ

आबरू शाह मुबारक

ख़ुशी के वक़्त भी तुझ को मलाल कैसा है

अबरार हामिद

ख़याल लम्स का कार-ए-सवाब जैसा था

अबरार आज़मी

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