सबसे Poetry (page 6)

करेंगे सब ये दा'वा नक़्द-ए-दिल जो हार बैठे हैं

ज़रीफ़ लखनवी

बुतों को भूल जाते हैं ख़ुदा को याद करते हैं

ज़रीफ़ लखनवी

मैकनिक शाएर

ज़रीफ़ जबलपूरी

लायल-पूर के मच्छर

ज़रीफ़ जबलपूरी

न आँसुओं में कभी था न दिल की आह में है

ज़मीर काज़मी

दुनिया की सल्तनत में ख़ुदा के ख़िलाफ़ हैं

ज़मीर काज़मी

राहतों के धोके में इज़्तिराब ढूँडे हैं

ज़मीर अतरौलवी

ख़ाक-ज़ादे ख़ाक में या ख़ाक पर हैं आज भी

ज़मीर अतरौलवी

अमीरों के बुरे अतवार को जो ठीक समझे है

ज़मीर अतरौलवी

किसी भी शाख़ पर पत्ता नहीं है

ज़मान कंजाही

तिरी यादों ने तन्हा कर दिया है

ज़मान कंजाही

ख़्वाब-नगर के शहज़ादे ने ऐसे भी निरवान लिया

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

फ़िक्र में डूबे थे सब और बा-हुनर कोई न था

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

दिल के बुझते हुए ज़ख़्मों को हवा देता है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

धूप थे सब रास्ते दरकार था साया हमें

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ऐ क़लंदर आ तसव्वुफ़ में सँवर कर रक़्स कर

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

मेरे ख़्वाबों का कभी जब आसमाँ रौशन हुआ

ज़की तारिक़

ऐ दिल तिरी आहों में इतना तो असर आए

ज़की काकोरवी

ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे

ज़करिय़ा शाज़

इक जैसे हैं दुख सुख सब के इक जैसी उम्मीदें

ज़करिय़ा शाज़

छोड़ आया हूँ पीछे सब आवाज़ों को

ज़करिय़ा शाज़

ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे

ज़करिय़ा शाज़

संग किसी के चलते जाएँ ध्यान किसी का रक्खें

ज़करिय़ा शाज़

खोया हुआ था हासिल होने वाला हूँ

ज़करिय़ा शाज़

देखो घिर कर बादल आ भी सकता है

ज़करिय़ा शाज़

छाँव से उस ने दामन भर के रक्खा है

ज़करिय़ा शाज़

खोया ग़म-ए-रिफ़ाक़त देखो कमाल अपना

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

क्यूँ आईने में देखा तू ने जमाल अपना

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

इस दर पे मुझे यार मचलने नहीं देते

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

तू बेवफ़ा है तिरा ए'तिबार कौन करे

ज़ैग़म हमीदी

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