यात्रा Poetry (page 36)

मैं कई बरसों से तेरी जुस्तुजू करती रही

इरम ज़ेहरा

तमाम दिन मुझे सूरज के साथ चलना था

इक़बाल उमर

छतों पे आग रही बाम-ओ-दर पे धूप रही

इक़बाल उमर

असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा

इक़बाल सुहैल

जैसे हर चेहरे की आँखें सर के पीछे आ लगीं

इक़बाल साजिद

वो चाँद है तो अक्स भी पानी में आएगा

इक़बाल साजिद

फेंक यूँ पत्थर कि सत्ह-ए-आब भी बोझल न हो

इक़बाल साजिद

मूँद कर आँखें तलाश-ए-बहर-ओ-बर करने लगे

इक़बाल साजिद

कल शब दिल-ए-आवारा को सीने से निकाला

इक़बाल साजिद

हर मोड़ नई इक उलझन है क़दमों का सँभलना मुश्किल है

इक़बाल सफ़ी पूरी

रात भर कोई न दरवाज़ा खुला

इक़बाल नवेद

सरसर चली वो गर्म कि साए भी जल गए

इक़बाल मिनहास

राह दोनों की वही है सामना हो जाएगा

इक़बाल माहिर

चश्म-ए-ख़ाना मक़ाम-ए-दर्द का है

इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

रवाँ हूँ मैं

इक़बाल कौसर

खोए गए तो आइने को मो'तबर किया

इक़बाल हैदर

ये निगाह-ए-शर्म झुकी झुकी ये जबीन-ए-नाज़ धुआँ धुआँ

इक़बाल अज़ीम

वो यूँ मिला कि ब-ज़ाहिर ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगा

इक़बाल अज़ीम

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था सर-ए-बज़्म रात ये क्या हुआ

इक़बाल अज़ीम

हर-चंद गाम गाम हवादिस सफ़र में हैं

इक़बाल अज़ीम

अपने मरकज़ से अगर दूर निकल जाओगे

इक़बाल अज़ीम

अब इसे क्या करे कोई आँखों में रौशनी नहीं

इक़बाल अज़ीम

ज़वाल-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न था और मैं था

इक़बाल अासिफ़

जो हो सके तो कभी इतनी मेहरबानी कर

इक़बाल अासिफ़

उर्दू

इक़बाल अशहर

तुम्हारी ख़ुश्बू थी हम-सफ़र तो हमारा लहजा ही दूसरा था

इक़बाल अशहर

दुनिया से कौन जाता है अपनी ख़ुशी के साथ

इन्तिज़ार ग़ाज़ीपुरी

घड़ी में अक्स-ए-इंसाँ

इंतिख़ाब अालम

हरा-भरा था चमन में शजर अकेला था

इंतिख़ाब अालम

बैठ जाता था मैं थक कर अपने तन की छाँव में

इंतिख़ाब अालम

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