यात्रा Poetry (page 45)

वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को

ग़ालिब

तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले

ग़ालिब

फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया

ग़ालिब

मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की

ग़ालिब

कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से

ग़ालिब

जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार

ग़ालिब

जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने महमिल बाँधा

ग़ालिब

गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज

ग़ालिब

अफ़्सोस कि दंदाँ का किया रिज़्क़ फ़लक ने

ग़ालिब

रह-ए-इश्क़ में ग़म-ए-ज़िंदगी की भी ज़िंदगी सफ़री रही

गणेश बिहारी तर्ज़

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह

गणेश बिहारी तर्ज़

सर किया ज़ुल्फ़ की शब को तो सहर तक पहुँचे

ग़फ़्फ़ार बाबर

दश्त-ए-तन्हाई में जीने का सलीक़ा सीखिए

फ़ुज़ैल जाफ़री

सुब्ह तक हम रात का ज़ाद-ए-सफ़र हो जाएँगे

फ़ुज़ैल जाफ़री

सदाक़तों के दहकते शोलों पे मुद्दतों तक चला किए हम

फ़ुज़ैल जाफ़री

रिश्ता जिगर का ख़ून-ए-जिगर से नहीं रहा

फ़ुज़ैल जाफ़री

भूले-बिसरे हुए ग़म फिर उभर आते हैं कई

फ़ुज़ैल जाफ़री

फैमली-प्लैनिंग

फ़ुर्क़त काकोरवी

हो गए यार पराए अपने

फ़ीरोज़ा ख़ुसरो

मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले

फ़िराक़ गोरखपुरी

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

तामीर-ए-नौ क़ज़ा-ओ-क़दर की नज़र में है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

मिलने का भी आख़िर कोई इम्कान बनाते

फ़ाज़िल जमीली

न सनम-कदों की है जुस्तुजू न ख़ुदा के घर की तलाश है

फ़ाज़िल अंसारी

हुई दिल टूटने पर इस तरह दिल से फ़ुग़ाँ पैदा

फ़ाज़िल अंसारी

नुत्क़ से लब तक है सदियों का सफ़र

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

ज़मीन चीख़ रही है कि आसमान गिरा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

ये क्या बताएँ कि किस रहगुज़र की गर्द हुए

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

सराब-ए-जिस्म को सहरा-ए-जाँ में रख देना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

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