यात्रा Poetry (page 47)

कोई मौसम हो कुछ भी हो सफ़र करना ही पड़ता है

फ़र्रुख़ जाफ़री

जाने क्या ऐसा उसे मुझ में नज़र आया था

फ़र्रुख़ जाफ़री

गो इस सफ़र में थक के बदन चूर हो गया

फ़र्रुख़ जाफ़री

दिल की ये आग बुझा दी किस ने

फ़र्रुख़ जाफ़री

अबस ही महव-ए-शब-ओ-रोज़ वो दुआ में था

फ़र्रुख़ जाफ़री

यूँही कर लेते हैं औक़ात बसर अपना क्या

फ़ारूक़ नाज़की

तेरी मर्ज़ी न दे सबात मुझे

फ़ारूक़ नाज़की

यूँ हुजरा-ए-ख़याल में बैठा हुआ हूँ मैं

फ़ारूक़ मुज़्तर

सलीब-ए-मौजा-ए-आब-ओ-हवा पे लिक्खा हूँ

फ़ारूक़ मुज़्तर

क़ुर्बतें बढ़ गई निगाहों की

फ़ारूक़ मुज़्तर

इक पल कहीं रुके थे सफ़र याद आ गया

फ़ारूक़ बख़्शी

मैं मो'तबर हूँ इश्क़ मिरा मो'तबर नहीं

फ़ारूक़ अंजुम

जंग में जाएगा अब मेरा ही सर जान गया

फ़ारूक़ अंजुम

तेरी ख़ातिर ये फ़ुसूँ हम ने जगा रक्खा है

फ़ारिग़ बुख़ारी

नश्शे में जो है कोहना शराबों से ज़ियादा

फ़ारिग़ बुख़ारी

मैं कि अब तेरी ही दीवार का इक साया हूँ

फ़ारिग़ बुख़ारी

कुछ नहीं गरचे तिरी राहगुज़र से आगे

फ़ारिग़ बुख़ारी

हर एक रास्ते का हम-सफ़र रहा हूँ मैं

फ़ारिग़ बुख़ारी

चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया

फ़ारिग़ बुख़ारी

चाँदनी ने रात का मौसम जवाँ जैसे किया

फ़ारिग़ बुख़ारी

हयात को तिरी दुश्वार किस तरह करता

फ़रहत शहज़ाद

दश्त-ए-वहशत ने फिर पुकारा है

फ़रहत शहज़ाद

था पहला सफ़र उस की रिफ़ाक़त भी नई थी

फ़रहत नदीम हुमायूँ

कोई भी हम-सफ़र नहीं होता

फ़रहत कानपुरी

वो मेरी जाँ के सदफ़ में गुहर सा रहता है

फ़रहत एहसास

सहरा के संगीन सफ़र में आब-रसानी कम न पड़े

फ़रहत एहसास

मोहब्बत चाहते हो क्यूँ वफ़ा क्यूँ माँगते हो

फ़रहत एहसास

काबा-ए-दिल दिमाग़ का फिर से ग़ुलाम हो गया

फ़रहत एहसास

घर बनाने में तमाम अहल-ए-सफ़र लग गए हैं

फ़रहत एहसास

इक हवा सा मिरे सीने से मिरा यार गया

फ़रहत एहसास

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