समां Poetry (page 3)

नींद से पहले

सलीम अहमद

बज़्म आख़िर हुई शम्ओं' का धुआँ बाक़ी है

सलीम अहमद

है दुकान-ए-शौक़ भरी हुई कोई मेहरबाँ हो तो ले के आ

सज्जाद बाक़र रिज़वी

ज़हर में डूबी हुई सुर्ख़ हिकायात में गुम

साजिद हमीद

दिल में रहना है परेशान ख़यालों का हुजूम

साइब आसमी

मुझे सोचने दे

साहिर लुधियानवी

माज़ूरी

साहिर लुधियानवी

हम दिल की निगाहों से जहाँ देख रहे हैं

सहर महमूद

ख़ुद से निकलूँ तो अलग एक समाँ होता है

सग़ीर मलाल

राहज़न आदमी रहनुमा आदमी

साग़र सिद्दीक़ी

कितने नायाब थे लम्हे जो वहाँ पर गुज़रे

रज़िया हलीम जंग

सलामत आए हैं फिर उस के कूचा-ओ-दर से

राज़ी अख्तर शौक़

वो रह-ओ-रस्म न वो रब्त-ए-निहाँ बाक़ी है

राम कृष्ण मुज़्तर

बहारें और वो रंगीं नज़ारे याद आते हैं

राम कृष्ण मुज़्तर

आसमाँ का सर्द सन्नाटा पिघलता जाएगा

राजेन्द्र मनचंदा बानी

अज्नबिय्यत का हर इक रुख़ पे निशाँ है यारो

इक़बाल माहिर

पकड़ी किसी से जावे नसीम और सबा बंधे

इंशा अल्लाह ख़ान

काश वो पहली मोहब्बत के ज़माने आते

इन्दिरा वर्मा

दिल पर किसी पत्थर का निशाँ यूँ ही रहेगा

इनाम नदीम

मैं गिला तुम से करूँ ऐ यार किस किस बात का

इमदाद अली बहर

हर तरफ़ मज्मा-ए-आशिक़ाँ है

इमदाद अली बहर

उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा

इब्न-ए-इंशा

दिल में इक शोर उठाते हैं चले जाते हैं

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

बरसों तिरी तलब में सफ़ीना रवाँ रहा

हसन अख्तर जलील

दिल-ए-नादाँ पे शिकायत का गुमाँ क्या होगा

हनीफ़ फ़ौक़

सुब्ह चले तो ज़ौक़-ए-तलब था अर्श-निशाँ ख़ुर्शीद-शिकार

हमीद नसीम

सवाल दिल का शाम-ए-ग़म को और उदास कर गया

हमीद नसीम

फिर किसी याद का दरवाज़ा खुला आहिस्ता

हमीद अलमास

बे-सूद एक सिलसिला-ए-इम्तिहाँ न खोल

हकीम मंज़ूर

शब-ए-वस्ल थी चाँदनी का समाँ था

हैदर अली आतिश

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