इनाम Poetry (page 3)

तुम भी हो ख़ंजर-ए-खुशाब भी है

हसन बरेलवी

चुरा के मेरे ताक़ से किताब कोई ले गया

हमीद अलमास

शब-ए-विसाल ये कहते हैं वो सुना के मुझे

हफ़ीज़ जौनपुरी

पी हम ने बहुत शराब तौबा

हफ़ीज़ जौनपुरी

ख़राब-ओ-ख़स्ता हुए ख़ाक में शबाब मिला

हफ़ीज़ जौनपुरी

दिल को इसी सबब से है इज़्तिराब शायद

हफ़ीज़ जौनपुरी

अभी तो मैं जवान हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी

इक शगुफ़्ता गुलाब जैसा था

हफ़ीज़ बनारसी

शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा

हबीब मूसवी

कोई अटका हुआ है पल शायद

गुलज़ार

नज़्म

गोपाल मित्तल

पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब

ग़ुलाम मौला क़लक़

कोई सबब तो था कि 'ग़ौस' फ़हम-ओ-ज़का के बावजूद

गाैस मथरावी

क़ल्ब-ओ-नज़र के सिलसिले मेरी निगाह में रहे

गाैस मथरावी

जानता हूँ सवाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहद

ग़ालिब

मंज़ूर थी ये शक्ल तजल्ली को नूर की

ग़ालिब

कोई उम्मीद बर नहीं आती

ग़ालिब

काबे में जा रहा तो न दो ताना क्या कहें

ग़ालिब

जिसे लोग कहते हैं तीरगी वही शब हिजाब-ए-सहर भी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

वहाँ मैं जाऊँ मगर कुछ मिरा भला भी तो हो

फ़रहत एहसास

झगड़े ख़ुदा से हो गए अहद-ए-शबाब में

फ़रहत एहसास

दोनों का ला-शुऊ'र है इतना मिला हुआ

फ़रहत एहसास

उस ने किया हिजाब मिरे देखने के बा'द

फख़्र अब्बास

जो तलब पे अहद-ए-वफ़ा किया तो वो आबरू-ए-वफ़ा गई

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तीन आवाज़ें

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

नज़्म

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

वो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुमकिन नहीं कि तेरी मोहब्बत की बू न हो

दाग़ देहलवी

भला हो पीर-ए-मुग़ाँ का इधर निगाह मिले

दाग़ देहलवी

बी.टी-नामा

कर्नल मोहम्मद ख़ान

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