इनाम Poetry (page 4)

मिरी बे-ख़ुदी है वो बे-ख़ुदी कहीं ख़ुदी का वहम-ओ-गुमाँ नहीं

चकबस्त ब्रिज नारायण

एक ख़्वाब

बिलाल अहमद

जिगर के टुकड़े हुए जल के दिल कबाब हुआ

ज़फ़र

हयात-ओ-काएनात पर किताब लिख रहे थे हम

अज़ीज़ नबील

मुश्किल है इमतियाज़-ए-अज़ाब-ओ-सवाब में

अज़ीज़ हैदराबादी

हुरूफ़ ख़ाली सदफ़ और निसाब ज़ख़्मों के

अज़हर नैयर

किसी के ऐब छुपाना सवाब है लेकिन

अज़हर इनायती

उजाला दश्त-ए-जुनूँ में बढ़ाना पड़ता है

अज़हर इनायती

हँसने-हँसाने पढ़ने-पढ़ाने की उम्र है

अज़हर फ़राग़

दरमियान-ए-गुनाह-ओ-सवाब आदमी

आतिफ़ ख़ान

वो ग़ज़ल की किताब है प्यारे

अतीक़ अंज़र

तक़द्दुस-ए-मआब

असरार जामई

परदेसी का ख़त

असरा रिज़वी

लुत्फ़ गुनाह में मिला और न मज़ा सवाब में

असर सहबाई

वो हाथ मार पलट कर जो कर दे काम तमाम

आरज़ू लखनवी

तड़पते दिल को न ले इज़्तिराब लेता जा

आरज़ू लखनवी

जो साक़िया तू ने पी के हम को दिया है जाम-ए-शराब आधा

अरशद अली ख़ान क़लक़

सुबू में अक्स-ए-रुख़-ए-माहताब देखते हैं

आरिफ़ इमाम

पियो कि मा-हसल-ए-होश किस ने देखा है

अनवर शऊर

तय हो गया है मसअला जब इंतिसाब का

अनवर मसूद

सारा शगुफ़्ता

अंजुम सलीमी

बदल चुके हैं सब अगली रिवायतों के निसाब

अंजुम ख़लीक़

बहाए शबनम ने अश्क पैहम नसीम भरती है सर्द आहें

अनीसा बेगम

शौक़-ए-सवाब कुछ नहीं ख़ौफ़-ए-अज़ाब कुछ नहीं

अम्न लख़नवी

ये मय-कदा है यहाँ हैं गुनाह जाम-ब-दस्त

अली सरदार जाफ़री

न माह-रू न किसी माहताब से हुई थी

अली मुज़म्मिल

अपाहिज गाड़ी का आदमी

अख़्तर-उल-ईमान

दिल-ओ-दिमाग़ को रो लूँगा आह कर लूँगा

अख़्तर शीरानी

हमारे हाथ में कब साग़र-ए-शराब नहीं

अख़्तर शीरानी

हम उन के नक़्श-ए-क़दम ही को जादा करते रहे

अहमद नदीम क़ासमी

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