वो हाथ मार पलट कर जो कर दे काम तमाम
बड़े अज़ाब में हूँ मैं सवाब लेता जा
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वो क्या लिखता जिसे इंकार करते भी हिजाब आया
चटकी जो कली कोयल कूकी उल्फ़त की कहानी ख़त्म हुई
जवाब देने के बदले वो शक्ल देखते हैं
यूँ दूर दूर दिल से हो हो के दिल-नशीं भी
आराम के थे साथी क्या क्या जब वक़्त पड़ा तो कोई नहीं
दफ़अतन तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी रुस्वाई है
पियूँ ही क्यूँ जो बुरा जानूँ और छुपा के पियूँ
ख़ाली न अंदलीब का सोज़-ए-नफ़स गया
जो दिल रखते हैं सीने में वो काफ़िर हो नहीं सकते
ख़ुशबू कहीं छुपी है मोहब्बत के फूल की
ख़ाली बैठे क्यूँ दिन काटें आओ रे जी इक काम करें
बरसों भटका किया और फिर भी न उन तक पहुँचा