ये मय-कदा है यहाँ हैं गुनाह जाम-ब-दस्त
वो मदरसा है वो मस्जिद वहाँ मिलेगा सवाब
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अभी और तेज़ कर ले सर-ए-ख़ंजर-ए-अदा को
एक ख़्वाब और
मैं ने अपना ही भिगोया है अभी तो दामन
छलकी साग़र में मय-ए-नाब गवारा बन कर
याद आए हैं अहद-ए-जुनूँ के खोए हुए दिल-दार बहुत
वही हुस्न-ए-यार में है वही लाला-ज़ार में है
सितारों के पयाम आए बहारों के सलाम आए
फ़रोग़-ए-दीदा-ओ-दिल लाला-ए-सहर की तरह
अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ ग़ुल होती जाती है
तबस्सुम-ए-लब-ए-साक़ी चमन खिला ही गया
बैठे हैं जहाँ साक़ी पैमाना-ए-ज़र ले कर
क़त्ल-ए-आफ़्ताब