ये तेरा गुलिस्ताँ तेरा चमन कब मेरी नवा के क़ाबिल है
नग़्मा मिरा अपने दामन में आप अपना गुलिस्ताँ लाता है
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हवा-ए-सुब्ह-ए-मशरिक़ जाग उठी है
तुम नहीं आए थे जब
मैं जहाँ तुम को बुलाता हूँ वहाँ तक आओ
फ़रोग़-ए-दीदा-ओ-दिल लाला-ए-सहर की तरह
सर-ए-तूर
शिकस्त-ए-शौक़ को तकमील-ए-आरज़ू कहिए
तिरे प्यार का नाम
बुझ गया तेरी मोहब्बत का शरारा तो क्या
सारे आलम में ये उड़ता हुआ गुल-रंग निशाँ
फाँस की तरह हर इक साँस खटकती है मुझे
बैठे हैं जहाँ साक़ी पैमाना-ए-ज़र ले कर
शम्अ की तरह पिघलते हुए दिल देखे हैं