शम्अ की तरह पिघलते हुए दिल देखे हैं
अश्क बन बन के निकलते हुए दिल देखे हैं
तू ने देखे ही नहीं गरमी-ए-रुख़्सार-ए-हयात
मैं ने इस आग में जलते हुए दिल देखे हैं
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
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Gulzar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
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फूटने वाली है मज़दूर के माथे से किरन
सुब्ह हर उजाले पे रात का गुमाँ क्यूँ है
उठो
दिल की आग जवानी के रुख़्सारों को दहकाए है
जन्नत ओ कौसर ओ अफ़रिश्ता ओ हूर ओ जिब्रील
वही हुस्न-ए-यार में है वही लाला-ज़ार में है
लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं
काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा
मक़तल-ए-शौक़ के आदाब निराले हैं बहुत
गर्द-ए-नफ़रत से बचा लेता हूँ दामन अपना
एक बात
ताशक़ंद की शाम