गर्द-ए-नफ़रत से बचा लेता हूँ दामन अपना
में मोहब्बत का पुजारी हूँ मसर्रत का नदीम
लाला-ओ-गुल का किया करती है गुलशन में तवाफ़
फिर भी काँटों से उलझता नहीं दामान-ए-नसीम
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ज़ेहन ओ जज़्बात ओ इशारात ओ किनायात बनी
सुब्ह हर उजाले पे रात का गुमाँ क्यूँ है
चाँद को रुख़्सत कर दो
अपने आ'साब के मारे हुए बेचारे अदीब
पैराहन-ए-शरर
तुम्हारा शहर
मेरा सफ़र
आ तेरे होंट चूम लूँ ऐ मुज़्दा-ए-नजात
प्यास भी एक समंदर है
निवाला
एक सवाल
आए हम 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' के नग़्मात के बा'द