गो मिरे सर पे सियह रात की परछाईं है
मेरे हाथों में है सूरज का छलकता हुआ जाम
मेरे अफ़्कार में है तल्ख़ी-ए-इमरोज़ मगर
मेरे अशआर में है इशरत-ए-फ़र्दा का पयाम
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साल-ए-नौ
अब आ गया है जहाँ में तो मुस्कुराता जा
ये बेकस-ओ-बेक़रार चेहरे
वो मिरी दोस्त वो हमदर्द वो ग़म-ख़्वार आँखें
अभी पोशीदा हैं नज़रों से ख़ज़ाने कितने
इश्क़ इक जिंस-ए-गिराँ-माया है इक दौलत है
जज़्बा-ए-शौक़ की तकमील नहीं हो सकती
बम्बई
तिरे प्यार का नाम
तुम्हारा शहर
हुस्न तेरा कभी गुल और कभी माहताब हुआ
फूटने वाली है मज़दूर के माथे से किरन