इश्क़ इक जिंस-ए-गिराँ-माया है इक दौलत है
ये मगर उम्र का हासिल तो नहीं है ऐ दोस्त
मंज़िलें और भी हैं इस से हसीं इस से जमील
वस्ल कुछ आख़िरी मंज़िल तो नहीं है ऐ दोस्त
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चश्म-ए-बीना में सितारों की हक़ीक़त क्या है
तख़्लीक़ पे फ़ितरत की गुज़रता है गुमाँ और
लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं
मिरे अज़ीज़ो, मिरे रफ़ीक़ो
अभी जवाँ है ग़म-ए-ज़िंदगी का हर लम्हा
माँ की आग़ोश में हँसता हुआ इक तिफ़्ल-ए-जमील
गो मिरे सर पे सियह रात की परछाईं है
मेरे ख़्वाब
कहीं दरिया कहीं वादी कहीं कोहसार बनी
सारे आलम में ये उड़ता हुआ गुल-रंग निशाँ
आज़माइश है तिरी जुर्अत-ए-रिंदाना की
ताशक़ंद की शाम