कहीं दरिया कहीं वादी कहीं कोहसार बनी
कहीं शोला कहीं शबनम कहीं गुलज़ार बनी
ख़ाक इक शक्ल से सौ शक्ल में तब्दील हुई
कहीं अल्मास कहीं गौहर-ए-शहवार बनी
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2713) Peoples Rate This
याद आए हैं अहद-ए-जुनूँ के खोए हुए दिलदार बहुत
नसीम-ए-सुब्ह-ए-तसव्वुर ये किस तरफ़ से चली
बहुत बर्बाद हैं लेकिन सदा-ए-इंक़लाब आए
कभी ख़ंदाँ कभी गिर्यां कभी रक़सा चलिए
कितनी आशाओं की लाशें सूखें दिल के आँगन में
उन को मिलता ही नहीं है दुर-ए-मक़सूद कहीं
कभी पहलू में समुंदर के तड़प उठती हैं
मौसम-ए-रंग भी है फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ भी तारी
सर-ए-तूर
अभी पोशीदा हैं नज़रों से ख़ज़ाने कितने
ज़िंदगानी ने दिया है ये मुझे हुक्म कि तू
शाख़-ए-गुल है कि ये तलवार खिंची है यारो