ज़िंदगानी ने दिया है ये मुझे हुक्म कि तू
शब-ए-तारीक के दामन में सितारे भर दे
फूँक दे जम्अ है जितना ख़स-ओ-ख़ाशाक-ए-निफ़ाक़
क़ल्ब-ए-इंसाँ में मोहब्बत के शरारे भर दे
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अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ ग़ुल होती जाती है
चाँद को रुख़्सत कर दो
नग़्मा-ए-ज़ंजीर है और शहर-ए-याराँ इन दिनों
गो मिरे सर पे सियह रात की परछाईं है
शबों की ज़ुल्फ़ की रू-ए-सहर की ख़ैर मनाओ
तबस्सुम-ए-लब-ए-साक़ी चमन खिला ही गया
लग़्ज़िश-ए-गाम लिए लग़्ज़िश-ए-मस्ताना लिए
ख़िरद वालो जुनूँ वालों के वीरानों में आ जाओ
उन को मिलता ही नहीं है दुर-ए-मक़सूद कहीं
अब किसी को भी नहीं हौसला-ए-तल्ख़ी-ए-जाम
ये किस ने फ़ोन पे दी साल-ए-नौ की तहनियत मुझ को
चश्म-ए-बीना में सितारों की हक़ीक़त क्या है