अब किसी को भी नहीं हौसला-ए-तल्ख़ी-ए-जाम
ख़ाक पर बिखरे हैं टूटे हुए शीशों के नुजूम
वाइज़-ए-शहर को मय-ख़्वारों ने माना है इमाम
ख़ानक़ाहों में है रिंदान-ए-बला-कश का हुजूम
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ये मय-कदा है यहाँ हैं गुनाह जाम-ब-दस्त
दिल की आग जवानी के रुख़्सारों को दहकाए है
इक किरन टूट के सौ रंग बिखर जाते हैं
आए हम 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' के नग़्मात के बा'द
अपने उड़ते हुए आँचल को न रह रह के सँभाल
अपने आ'साब के मारे हुए बेचारे अदीब
हर एक ख़ुशी दर्द के दामन में पली है
शिकस्त-ए-शौक़ को तकमील-ए-आरज़ू कहिए
बुझ गया तेरी मोहब्बत का शरारा तो क्या
किस क़दर नूर-ए-सहर देख के शरमाते हैं
फ़रोग़-ए-दीदा-ओ-दिल लाला-ए-सहर की तरह