अपने उड़ते हुए आँचल को न रह रह के सँभाल
हुस्न के परचम-ए-ज़र-तार को लहराने दे
गिर गया फूल महकते हुए जोड़े से तो क्या
ज़ुल्फ़ को ता-ब-कमर आ के मचल जाने दे
Jaun Eliya
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अभी और तेज़ कर ले सर-ए-ख़ंजर-ए-अदा को
फ़रेब
हसीन-तर
आए हम 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' के नग़्मात के बा'द
अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ गुल होती जाती है
ये किस ने फ़ोन पे दी साल-ए-नौ की तहनियत मुझ को
उलझे काँटों से कि खेले गुल-ए-तर से पहले
गुफ़्तुगू (हिन्द पाक दोस्ती के नाम)
चाँद को रुख़्सत कर दो
उठो
मौसम-ए-रंग भी है फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ भी तारी
सर-ए-तूर