अता हुई है मिरे दिल की सल्तनत तुझ को
हरीम-ए-जाँ में उतर शम्-ए-दिलबरी ले कर
गुज़र वफ़ा के शबिस्तान-ए-रंग-ओ-निकहत में
मिज़ाज-ए-आदमी ओ शेवा-ए-परी ले कर
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Rahat Indori
Gulzar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Habib Jalib
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(823) Peoples Rate This
मेरे ख़्वाब
मौत को जानते हैं अस्ल-ए-हयात-ए-अबदी
तू हक़ीक़त को समझता है तिलिस्मी तस्वीर
फूटने वाली है मज़दूर के माथे से किरन
शबों की ज़ुल्फ़ की रू-ए-सहर की ख़ैर मनाओ
वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब
मैं ने अपना ही भिगोया है अभी तो दामन
क़त्ल-ए-आफ़्ताब
तू वो बहार जो अपने चमन में आवारा
नसीम-ए-सुब्ह-ए-तसव्वुर ये किस तरफ़ से चली
तख़्लीक़ पे फ़ितरत की गुज़रता है गुमाँ और