तू हक़ीक़त को समझता है तिलिस्मी तस्वीर
तेरे नज़दीक ये एहसास की रानाई है
तू ये कहता है मिरे दिल में है बे-जान बहार
मैं ये कहता हूँ गुलिस्ताँ में बहार आई है
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रंग पर रंग निखरते ही चले आते हैं
हाथों का तराना
वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब
कभी पहलू में समुंदर के तड़प उठती हैं
दो चराग़
वुफ़ूर-ए-शौक़ की रंगीं हिकायतें मत पूछ
सारे आलम में ये उड़ता हुआ गुल-रंग निशाँ
वो मिरी दोस्त वो हमदर्द वो ग़म-ख़्वार आँखें
अपने आ'साब के मारे हुए बेचारे अदीब
मेरे ख़्वाब
इक किरन टूट के सौ रंग बिखर जाते हैं
उर्दू