रंग पर रंग निखरते ही चले आते हैं
रूह होती ही नहीं सेर वो नज़्ज़ारा है
जिस्म-ए-महबूब है या क़ामत-ए-र'अना-ए-बहार
जैसे फूलों का उबलता हुआ फ़व्वारा है
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सितारों के पयाम आए बहारों के सलाम आए
फ़रोग़-ए-दीदा-ओ-दिल लाला-ए-सहर की तरह
मेरी दुनिया में मोहब्बत नहीं कहते हैं इसे
इक किरन टूट के सौ रंग बिखर जाते हैं
इसी दुनिया में दिखा दें तुम्हें जन्नत की बहार
इश्क़ का नग़्मा जुनूँ के साज़ पर गाते हैं हम
मैं ने अपना ही भिगोया है अभी तो दामन
तबस्सुम-ए-लब-ए-साक़ी चमन खिला ही गया
आ तेरे होंट चूम लूँ ऐ मुज़्दा-ए-नजात
तू ने ख़ुद तल्ख़ बना रक्खी है दुनिया अपनी
लहू पुकारता है
दिल की आग जवानी के रुख़्सारों को दहकाए है