मेरी दुनिया में मोहब्बत नहीं कहते हैं इसे
यूँ तो हर संग के सीने में शरर मिलता है
सैकड़ों अश्क जब आँखों से बरस जाते हैं
तब कहीं एक मोहब्बत का गुहर मिलता है
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आदमी लाख हो मायूस मगर मिस्ल-ए-नसीम
कितनी आशाओं की लाशें सूखें दिल के आँगन में
वो मिरी दोस्त वो हमदर्द वो ग़म-ख़्वार आँखें
एक सवाल
वही हुस्न-ए-यार में है वही लाला-ज़ार में है
नसीम-ए-सुब्ह-ए-तसव्वुर ये किस तरफ़ से चली
मैं तो भूला नहीं तुम भूल गई हो मुझ को
बुझ गया तेरी मोहब्बत का शरारा तो क्या
फाँस की तरह हर इक साँस खटकती है मुझे
मेरा सफ़र
निकहत-ओ-रंग का तूफ़ान उमँड आया है
पैराहन-ए-शरर