मुंतशिर हो गई वुसअ'त में सितारों की तरह
तिलमिलाती रही बेताब शरारों की तरह
ख़ाक सदियों की मगर जुम्बिश-ए-पैहम के तुफ़ैल
मुत्तहिद हो गई गूँधे हुए हारों की तरह
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दो चराग़
ख़ूगर-ए-रू-ए-ख़ुश-जमाल हैं हम
शम्अ की तरह पिघलते हुए दिल देखे हैं
वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब
चश्म-ए-बीना में सितारों की हक़ीक़त क्या है
परतव से जिस के आलम-ए-इम्काँ बहार है
दिल की आग जवानी के रुख़्सारों को दहकाए है
सितारों के पयाम आए बहारों के सलाम आए
ये बेकस-ओ-बेक़रार चेहरे
बुझ गया तेरी मोहब्बत का शरारा तो क्या
उन को मिलता ही नहीं है दुर-ए-मक़सूद कहीं
इक किरन टूट के सौ रंग बिखर जाते हैं