बुझ गया तेरी मोहब्बत का शरारा तो क्या
डूबते देखे हैं गर्दूं के सितारे मैं ने
सर्द होते हुए दिल बर्फ़ की क़ाशों की तरह
मुंजमिद होते हुए देखे हैं धारे में ने
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तू वो बहार जो अपने चमन में आवारा
मेरा सफ़र
उन को मिलता ही नहीं है दुर-ए-मक़सूद कहीं
ख़िरद वालो जुनूँ वालों के वीरानों में आ जाओ
बहुत क़रीब हो तुम
लहू पुकारता है
बम्बई
एक ख़्वाब और
वो मिरी दोस्त वो हमदर्द वो ग़म-ख़्वार आँखें
गर्द-ए-नफ़रत से बचा लेता हूँ दामन अपना
कभी ख़ंदाँ कभी गिर्यां कभी रक़सा चलिए
तिरे प्यार का नाम