निकहत-ओ-रंग का तूफ़ान उमँड आया है
आग सी लग गई यूरोप के समन-ज़ारों में
इस तरफ़ से भी गुज़र क़ाफ़िला-ए-सुबह-ए-बहार
एक भी फूल नहीं मेरे चमन-ज़ारों में
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
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Wasi Shah
Rahat Indori
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वही हुस्न-ए-यार में है वही लाला-ज़ार में है
मौसम-ए-रंग भी है फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ भी तारी
अब भी रौशन हैं
तुम्हारे ए'जाज़-ए-हुस्न की मेरे दिल पे लाखों इनायतें हैं
दामन झटक के वादी-ए-ग़म से गुज़र गया
इक किरन टूट के सौ रंग बिखर जाते हैं
मिरे अज़ीज़ो, मिरे रफ़ीक़ो
यक-ब-यक क्यूँ चमक उट्ठी हैं निगाहें तेरी
कमी कमी सी थी कुछ रंग-ओ-बू-ए-गुलशन में
याद आए हैं अहद-ए-जुनूँ के खोए हुए दिलदार बहुत
देखो तो तीरा-ओ-तारीक फ़ज़ा का आलम
वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब