कमी कमी सी थी कुछ रंग-ओ-बू-ए-गुलशन में
लब-ए-बहार से निकली हुई दुआ तुम हो
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
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Allama Iqbal
Parveen Shakir
Wasi Shah
Gulzar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
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इश्क़ का नग़्मा जुनूँ के साज़ पर गाते हैं हम
सौ मिलीं ज़िंदगी से सौग़ातें
उन के क्या रंग थे अब याद नहीं है मुझ को
शबों की ज़ुल्फ़ की रू-ए-सहर की ख़ैर मनाओ
मैं ने अपना ही भिगोया है अभी तो दामन
पैराहन-ए-शरर
शीशा-ए-दिल को अगर ठेस कोई लगती है
चश्म-ए-बीना में सितारों की हक़ीक़त क्या है
दोस्ती का हाथ
सारे आलम में ये उड़ता हुआ गुल-रंग निशाँ
कोई हर गाम पे सौ दाम बिछा जाता है