नसीम-ए-सुब्ह-ए-तसव्वुर ये किस तरफ़ से चली
कि मेरे दिल में चमन दरकिनार आती है
कहीं मिले तो मिरे गुल-बदन से कह देना
तिरे ख़याल से बू-ए-बहार आती है
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काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा
तू नहीं है न सही तेरी मोहब्बत का ख़याल
हुस्न ही हुस्न है फ़ितरत के सनम-ख़ाने में
मेरी दुनिया में मोहब्बत नहीं कहते हैं इसे
इत्र-ए-फ़िरदौस-ए-जवाँ में ये बसाए हुए होंट
ज़ुल्म की कुछ मीआ'द नहीं है
निवाला
मैं तो भूला नहीं तुम भूल गई हो मुझ को
नग़्मा-ए-ज़ंजीर है और शहर-ए-याराँ इन दिनों
निकहत-ओ-रंग का तूफ़ान उमँड आया है
लहू पुकारता है
साल-हा-साल फ़ज़ाओं में शरर-बार रही