साल-हा-साल फ़ज़ाओं में शरर-बार रही
एक पुर-सोज़ हयूला में गिरफ़्तार रही
ख़ाक हर चंद कि थी पस्त ओ हक़ीर ओ नादार
अपनी फ़ितरत से मगर बर-सर-ए-पैकार रही
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Anwar Masood
Allama Iqbal
Habib Jalib
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(767) Peoples Rate This
मौसम-ए-रंग भी है फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ भी तारी
हुस्न तेरा कभी गुल और कभी माहताब हुआ
कितनी आशाओं की लाशें सूखें दिल के आँगन में
मेरे ख़्वाब
प्यास भी एक समंदर है
हवा-ए-सुब्ह-ए-मशरिक़ जाग उठी है
अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ ग़ुल होती जाती है
अब आ गया है जहाँ में तो मुस्कुराता जा
चश्मा-ए-बद-मस्त को फिर शेवा-ए-दिल-दारी दे
आ तेरे होंट चूम लूँ ऐ मुज़्दा-ए-नजात
वतन से दूर यारान-ए-वतन की याद आती है
उर्दू