आ तेरे होंट चूम लूँ ऐ मुज़्दा-ए-नजात
सदियों के ब'अद ख़त्म पे आई सितम की रात
हर शाख़ पर खिले हुए रंग-ए-शफ़क़ के फूल
हर नख़्ल की कमर में नसीम-ए-सहर का हात
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तबस्सुम-ए-लब-ए-साक़ी चमन खिला ही गया
तुम नहीं आए थे जब
वतन से दूर यारान-ए-वतन की याद आती है
काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा
गो मिरे सर पे सियह रात की परछाईं है
याद आए हैं अहद-ए-जुनूँ के खोए हुए दिलदार बहुत
मैं तो भूला नहीं तुम भूल गई हो मुझ को
वही है वहशत वही है नफ़रत आख़िर इस का क्या है सबब
ख़ूगर-ए-रू-ए-ख़ुश-जमाल हैं हम
कभी ख़ंदाँ कभी गिर्यां कभी रक़सा चलिए
शीशा-ए-दिल को अगर ठेस कोई लगती है
मौत को जानते हैं अस्ल-ए-हयात-ए-अबदी