आदमी लाख हो मायूस मगर मिस्ल-ए-नसीम
रक़्स करता है तमन्नाओं के गुलज़ारों में
रास्ते वादई-ओ-सहरा में बना लेते हैं
चश्मे रुक कर नहीं रह जाते हैं कोहसारों में
Jaun Eliya
Wasi Shah
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Gulzar
Allama Iqbal
Anwar Masood
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देखो तो तीरा-ओ-तारीक फ़ज़ा का आलम
काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा
वुफ़ूर-ए-शौक़ की रंगीं हिकायतें मत पूछ
साल-ए-नौ
शुऊर
सारे आलम में ये उड़ता हुआ गुल-रंग निशाँ
उर्दू
इन्फ़िरादियत
जन्नत ओ कौसर ओ अफ़रिश्ता ओ हूर ओ जिब्रील
तबस्सुम-ए-लब-ए-साक़ी चमन खिला ही गया
याद आए हैं अहद-ए-जुनूँ के खोए हुए दिल-दार बहुत
तुम नहीं आए थे जब