आज़माइश है तिरी जुर्अत-ए-रिंदाना की
आब है मौज-ए-मय-ए-नाब में तलवारों की
चश्म-ए-साक़ी में है अब होश-ओ-ख़िरद का पैग़ाम
आज पुर्सिश नहीं बहके हुए मय-ख़ारों की
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इक सुब्ह है जो हुई नहीं है
यक-ब-यक क्यूँ चमक उट्ठी हैं निगाहें तेरी
बैठे हैं जहाँ साक़ी पैमाना-ए-ज़र ले कर
इन्फ़िरादियत
ख़ूगर-ए-रू-ए-ख़ुश-जमाल हैं हम
सौ मिलीं ज़िंदगी से सौग़ातें
तू नहीं है न सही तेरी मोहब्बत का ख़याल
मौत को जानते हैं अस्ल-ए-हयात-ए-अबदी
मिरे अज़ीज़ो, मिरे रफ़ीक़ो
अब किसी को भी नहीं हौसला-ए-तल्ख़ी-ए-जाम
मेरे ख़्वाब
शबों की ज़ुल्फ़ की रू-ए-सहर की ख़ैर मनाओ