तू नहीं है न सही तेरी मोहब्बत का ख़याल
ढूँढ लेता है तुझे हुस्न की नज़्ज़ारों में
मुस्कुराता है दम-ए-सुब्ह उफ़ुक़ से कोई
रक़्स करता है कोई रात को सय्यारों में
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(890) Peoples Rate This
फ़रोग़-ए-दीदा-ओ-दिल लाला-ए-सहर की तरह
वही हुस्न-ए-यार में है वही लाला-ज़ार में है
हसीन-तर
परतव से जिस के आलम-ए-इम्काँ बहार है
बैठे हैं जहाँ साक़ी पैमाना-ए-ज़र ले कर
ये मय-कदा है यहाँ हैं गुनाह जाम-ब-दस्त
प्यास जहाँ की एक बयाबाँ तेरी सख़ावत शबनम है
इक सुब्ह है जो हुई नहीं है
चाँद को रुख़्सत कर दो
आए हम 'ग़ालिब'-ओ-'इक़बाल' के नग़्मात के बा'द
अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ गुल होती जाती है
मुन्तशर हो गई वुसअ'त में सितारों की तरह