देखो तो तीरा-ओ-तारीक फ़ज़ा का आलम
किस क़दर दरहम-ओ-बरहम है सितारों का निज़ाम
तो चमकता है उफ़ुक़ पर अभी मानिंद-ए-हिलाल
आसमाँ वक़्त का है मुंतज़िर-ए-माह-ए-तमाम
Gulzar
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क़त्ल-ए-आफ़्ताब
आँधियाँ चलती रहें अफ़्लाक थर्राते रहे
शाख़-ए-गुल है कि ये तलवार खिंची है यारो
तुम नहीं आए थे जब
शिकस्त-ए-शौक़ को तकमील-ए-आरज़ू कहिए
एक सवाल
खुले हैं मश्रिक-ओ-मग़रिब की गोद में गुलज़ार
हसीन-तर
इश्क़ इक जिंस-ए-गिराँ-माया है इक दौलत है
पुराने साल की ठिठुरी हुई परछाइयाँ सिमटीं
साल-ए-नौ
तिरे प्यार का नाम