मैं तो भूला नहीं तुम भूल गई हो मुझ को
ख़ैर गर तुम भी नहीं हो मिरे ग़म-ख़्वारों में
तुम न आओगी तो क्या अब नहीं आएगी बहार
फूल क्या अब न खिलेंगे मिरे गुलज़ारों में
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तुम्हारा शहर
कहीं दरिया कहीं वादी कहीं कोहसार बनी
तख़्लीक़ का कर्ब
ज़ेहन ओ जज़्बात ओ इशारात ओ किनायात बनी
माँ की आग़ोश में हँसता हुआ इक तिफ़्ल-ए-जमील
कभी पहलू में समुंदर के तड़प उठती हैं
एक ख़्वाब और
दिल-ओ-नज़र को अभी तक वो दे रहे हैं फ़रेब
आदमी लाख हो मायूस मगर मिस्ल-ए-नसीम
गो मिरे सर पे सियह रात की परछाईं है
इक सुब्ह है जो हुई नहीं है
गर्द-ए-नफ़रत से बचा लेता हूँ दामन अपना