शबनम Poetry (page 3)

ये किस से आज बरहम हो गई है

तिलोकचंद महरूम

कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी

तिलोकचंद महरूम

काश इक शब के लिए ख़ुद को मयस्सर हो जाएँ

तौसीफ़ तबस्सुम

वो हम से क्यूँ अलग था क्यूँ दुखी था

तसव्वुर ज़ैदी

बाक़ी सब कुछ फ़ानी है

तारिक़ राशीद दरवेश

इंतिज़ार

तनवीर अंजुम

वो रक़्स कहाँ और वो तब-ओ-ताब कहाँ है

तनवीर अहमद अल्वी

जैसे ही ज़ीना बोला तह-ख़ाने का

तालिब जोहरी

न बे-कली का हुनर है न जाँ-फ़ज़ाई का

तालीफ़ हैदर

दिल तेरी नज़र की शह पा कर मिलने के बहाने ढूँढे है

ताज भोपाली

चमन इतना ख़िज़ाँ-आसार पहले कब हुआ था

तहसीन फ़िराक़ी

निखर गए हैं पसीने में भीग कर आरिज़

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

बस्ती में कमी किस चीज़ की है पत्थर भी बहुत शीशे भी बहुत

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

साँस का अपनी रग-ए-जाँ से गुज़र होने तक

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

ये शबनम फूल तारे चाँदनी में अक्स किस का है

सय्यद शकील दस्नवी

आज फिर वक़्त कोई अपनी निशानी माँगे

सय्यद शकील दस्नवी

आज फिर वक़्त कोई अपनी निशानी माँगे

सय्यद शकील दस्नवी

मुझ को दौलत मिली तिरे ग़म की

सय्यद बशीर हुसैन बशीर

वाइज़-ए-शहर ख़ुदा है मुझे मा'लूम न था

सय्यद आबिद अली आबिद

कोई दुश्मन कोई हमदम भी नहीं साथ अपने

सुलैमान अरीब

जो तेरे हुस्न में नर्मी भी बाँकपन भी है

सुलैमान अरीब

दीद का इसरार मूसा लन-तरानी कोह-ए-तूर

सुग़रा आलम

मख़मूर चश्मों की तबरीद करने कूँ शबनम है सरदाब शोरों की मानिंद

सिराज औरंगाबादी

इश्क़ में आ कि अक़्ल कूँ खोनाँ

सिराज औरंगाबादी

ग़म की जब सोज़िश सीं महरम होवेगा

सिराज औरंगाबादी

दिल-ए-आईना-सामाँ पारा पारा कर के देखा जाए

सिद्दीक़ मुजीबी

फ़ुग़ान-ए-रूह कोई किस तरह सुनाए उसे

सिद्दीक़ शाहिद

वो जिस के दिल में निहाँ दर्द दो-जहाँ का था

शोला हस्पानवी

मैं ने ही न कुछ खोया जो पाया न किसी को

शोहरत बुख़ारी

शो'ला-ख़ेज़-ओ-शो'ला-वर अब हर रह-ए-तदबीर है

शिव चरन दास गोयल ज़ब्त

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