शायद Poetry (page 16)

आप-बीती

इफ़्तिख़ार आज़मी

ख़मोश रह के ज़वाल-ए-सुख़न का ग़म किए जाएँ

इदरीस बाबर

हम से शायद मो'तबर ठहरी सबा

इब्न-ए-मुफ़्ती

हम से मिलते थे सितारे आप के

इब्न-ए-मुफ़्ती

फिर तिरा शहर तिरी राहगुज़र हो कि न हो

हुसैन ताज रिज़वी

यगानगी में भी दुख ग़ैरियत के सहता हूँ

हुरमतुल इकराम

जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा कब बहले बहलाने से

हुमैरा रहमान

कभी आहें कभी नाले कभी आँसू निकले

होश तिर्मिज़ी

मैं सोचता हूँ इस लिए शायद मैं ज़िंदा हूँ

हिमायत अली शाएर

इस शहर-ए-ख़ुफ़्तगाँ में कोई तो अज़ान दे

हिमायत अली शाएर

आरास्ता बज़्म-ए-ऐश हुई अब रिंद पिएँगे खुल खुल के

हीरा लाल फ़लक देहलवी

दास्तान-ए-फ़ितरत है ज़र्फ़ की कहानी है

हयात वारसी

मैं ख़ाल-ओ-ख़द का सरापा तसव्वुरात में था

हयात लखनवी

नाला-ए-गर्म के और दम सर्द भरे क्या जिएँ हम तो मरे

हातिम अली मेहर

रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम

हसरत मोहानी

है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी

हसरत मोहानी

हर तरफ़ है उस से मेरे दिल के लग जाने में धूम

हसरत अज़ीमाबादी

किस के दिल में बसता हूँ

हसनैन आक़िब

ज़रा सी चोट लगी थी कि चलना भूल गए

हसीब सोज़

साँझ-सवेरे फिरते हैं हम जाने किस वीराने में

हसन रिज़वी

ख़याल-ओ-ख़्वाब में कब तक ये गुफ़्तुगू होगी

हसन नईम

कोई ग़मगीं कोई ख़ुश हो कर सदा देता रहा

हसन नज्मी सिकन्दरपुरी

अपनी वज्ह-ए-बर्बादी जानते हैं हम लेकिन क्या करें बयाँ लोगो

हसन कमाल

निभाओ अब उसे जो वज़्अ भी बना ली है

हसन अख्तर जलील

ख़ला के दश्त में ये तुर्फ़ा माजरा भी है

हसन अख्तर जलील

ऐ फ़ैरी-टेल

हसन अकबर कमाल

सफ़्फ़ाक सराब से ज़ियादा

हसन अकबर कमाल

हसरत भरी नज़र से वो देखता है मुझ को

हार्श बरहम भट

ख़ुशी गर है तो क्या मातम नहीं है

हंस राज सचदेव 'हज़ीं'

न जाने कब लिखा जाए

हमीदा शाहीन

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