शायद Poetry (page 15)

और कुछ तेज़ चलीं अब के हवाएँ शायद

रईस सिद्दीक़ी

नतशे ने कहा

रईस फ़रोग़

आँखों के कश्कोल शिकस्ता हो जाएँगे शाम को

रईस फ़रोग़

ग़ुरूब-ए-मेहर का मातम है गुलिस्तानों में

रईस अमरोहवी

चाँद और चकोर

राही मासूम रज़ा

हम क्या जानें क़िस्सा क्या है हम ठहरे दीवाने लोग

राही मासूम रज़ा

हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले

इरफ़ान सत्तार

नक़ाब चेहरे से उस के कभी सरकता था

इरफ़ान अहमद

हम बाग़-ए-तमन्ना में दिन अपने गुज़ार आए

इरम लखनवी

मैं कि वक़्फ़-ए-ग़म-ए-दौराँ न हुआ था सो हुआ

इक़बाल उमर

जो ज़ख़्म जम्अ किए आँख-भर सुनाता हूँ

इक़बाल कौसर

वो यूँ मिला कि ब-ज़ाहिर ख़फ़ा ख़फ़ा सा लगा

इक़बाल अज़ीम

हम बहुत दूर निकल आए हैं चलते चलते

इक़बाल अज़ीम

अपना घर छोड़ के हम लोग वहाँ तक पहुँचे

इक़बाल अज़ीम

बस्ती तुझ बिन उजाड़ सी है

इंशा अल्लाह ख़ान

ये शफ़क़ चाँद सितारे नहीं अच्छे लगते

इन्दिरा वर्मा

और तो कोई था नहीं शायद

इंद्र सराज़ी

दिन में जो साथ सब के हँसता था

इंद्र सराज़ी

आँख ने धोका खाया था या साया था

इनाम नदीम

वो तबस्सुम था जहाँ शायद वहीं पर रह गया

इम्तियाज़ अहमद

एस एम एस

इमरान शनावर

मैं शजर हूँ और इक पत्ता है तू

इमरान हुसैन आज़ाद

ख़ुदा तू इतनी भी महरूमियाँ न तारी रख

इमरान हुसैन आज़ाद

गर्दिश-ए-चर्ख़ से क़याम नहीं

इमदाद अली बहर

आज़ुर्दा हो गया वो ख़रीदार बे-सबब

इमदाद अली बहर

चुराने को चुरा लाया मैं जल्वे रू-ए-रौशन से

इज्तिबा रिज़वी

ख़ल्क़ ने इक मंज़र नहीं देखा बहुत दिनों से

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कहीं से कोई हर्फ़-ए-मो'तबर शायद न आए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

जुनूँ का रंग भी हो शोला-ए-नुमू का भी हो

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हासिल

इफ़्तिख़ार आज़मी

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