शायद Poetry (page 13)

सज़ा बग़ैर अदालत से मैं नहीं आया

सहर अंसारी

इक आस का धुँदला साया है इक पास का तपता सहरा है

सहर अंसारी

क्यूँ तू ने वा किया था बंद-ए-क़बा चमन में

सग़ीर अली मुरव्वत

फूलों से बदन उन के काँटे हैं ज़बानों में

साग़र आज़मी

उस मेज़ पर सर झुकाए

सईदुद्दीन

साअत-ए-हिज्र जब सताती है

सईद नक़वी

चिता में बैठी ख़्वाहिश

सईद अहमद

जब समाअत तिरी आवाज़ तलक जाती है

सईद अहमद

वो जिस का रंग सलोना है बादलों की तरह

सादिक़ नसीम

दिखाएगी असर दिल की पुकार आहिस्ता आहिस्ता

सदा अम्बालवी

वो जाग रहा हो शायद अब तक

साबिर ज़फ़र

ये सोच के राख हो गया हूँ

साबिर ज़फ़र

वो धूप वो गलियाँ वही उलझन नज़र आए

साबिर वसीम

आज की रात

साबिर दत्त

आहिस्ता बोलिएगा तमाशा खड़ा न हो

साबिर

आ जा अँधेरी रातें तन्हा बिता चुका हूँ

सबा अख़्तर

आईना बन जाइए जल्वा-असर हो जाइए

सबा अकबराबादी

मौत इक दरिंदा है ज़िंदगी बला सी है

सादुल्लाह शाह

हम कि चेहरे पे न लाए कभी वीरानी को

सादुल्लाह शाह

ख़ुदा की ख़मोशी में शायद हो उस का वजूद

रियाज़ लतीफ़

मैं वहाँ हूँ कि नहीं चाहे तो जा कर देखे

रियाज़ लतीफ़

हदों के न होने की ज़िल्लत से हारे हुए

रियाज़ लतीफ़

उफ़ रे उभार उफ़ रे ज़माना उठान का

रियाज़ ख़ैराबादी

मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका

रियाज़ ख़ैराबादी

छेड़ते हैं गुदगुदाते हैं फिर अरमाँ आज-कल

रियाज़ ख़ैराबादी

जलन दिल की लिक्खें जो हम दिल-जले

रिन्द लखनवी

रहा असीर कई साल नक़्श-ए-पा की तरह

रिफ़अत सुलतान

नादान दिल-फ़रेब मोहब्बत न खा कभी

रिफ़अत सुलतान

शायद कभी ऐसा हो कुछ फ़िल्म सा कर जाऊँ

रज़्ज़ाक़ अरशद

हर आने वाले पल से डर रहा हूँ

रज़्ज़ाक़ अरशद

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