लौ Poetry (page 15)

दिल पे वो वक़्त भी किस दर्जा गिराँ होता है

आमिर उस्मानी

ख़ामोशियों को आलम-ए-अस्वात पर कभी

आमिर नज़र

पिला साक़िया अर्ग़वानी शराब

अमीर मीनाई

कौन कहता है सर-ए-अर्श-ए-बरीं रहता है

अमीर अहमद ख़ुसरव

तुम और हम

अमीक़ हनफ़ी

इक अश्क सर-ए-शोख़ी-ए-रुख़सार में गुम है

अमीन अडीराई

ये शो'ले आज़माना जानते हैं

अंबरीन हसीब अंबर

ये शो'ले आज़माना जानते हैं

अंबरीन हसीब अंबर

हो गई बात पुरानी फिर भी

अंबरीन हसीब अंबर

साएबाँ क्या अब्र का टुकड़ा है क्या

अम्बर शमीम

हँसते हुए चेहरे में कोई शाम छुपी थी

अम्बर बहराईची

फिर कोई मुश्किल जवाँ होने को है

अमर सिंह फ़िगार

ज़ख़्म दिल का ख़ूँ-चकाँ ऐसा न था

अलक़मा शिबली

वालिदा मरहूमा की याद में

अल्लामा इक़बाल

मार्च 1907

अल्लामा इक़बाल

जवाब-ए-शिकवा

अल्लामा इक़बाल

ख़िरद के पास ख़बर के सिवा कुछ और नहीं

अल्लामा इक़बाल

ताशक़ंद की शाम

अली सरदार जाफ़री

लहू पुकारता है

अली सरदार जाफ़री

एक ख़्वाब और

अली सरदार जाफ़री

दो चराग़

अली सरदार जाफ़री

बहुत क़रीब हो तुम

अली सरदार जाफ़री

ख़िरद वालो जुनूँ वालों के वीरानों में आ जाओ

अली सरदार जाफ़री

फ़रोग़-ए-दीदा-ओ-दिल लाला-ए-सहर की तरह

अली सरदार जाफ़री

अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ गुल होती जाती है

अली सरदार जाफ़री

अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ ग़ुल होती जाती है

अली सरदार जाफ़री

वो अर्ज़-ए-ग़म पे मश्वरा-ए-इख़्तिसार दे

अलीम उस्मानी

बदन मल्बूस में शोला सा इक लर्ज़ां क़रीन-ए-जाँ

अकरम नक़्क़ाश

खुली और बंद आँखों से उसे तकता रहा मैं भी

अकरम नक़्क़ाश

मेरा दोस्त अबुल-हौल

अख़्तर-उल-ईमान

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