लौ Poetry (page 13)

तिरी निगाह का अंदाज़ क्या नज़र आया

बाक़ी सिद्दीक़ी

सुब्ह का भेद मिला क्या हम को

बाक़ी सिद्दीक़ी

कौन भला ये कहता है ख़ुद आ के हम को मनाएँ आप

बाक़र मेहदी

सर-ए-राहगुज़र एक मंज़र

बलराज कोमल

निशान-ए-ज़ख़्म पे निश्तर-ज़नी जो होने लगी

बद्र-ए-आलम ख़लिश

गुम हुए जाते हैं धड़कन के निशाँ हम-नफ़सो

बद्र-ए-आलम ख़लिश

आसमाँ पर काले बादल छा गए

बद्र-ए-आलम ख़लिश

परछाइयाँ

अज़ीज़ तमन्नाई

अब कौन सी मता-ए-सफ़र दिल के पास है

अज़ीज़ तमन्नाई

अज़ल-अबद

अज़ीज़ क़ैसी

सूरत-ए-ज़ंजीर मौज-ए-ख़ूँ में इक आहंग है

अज़ीज़ हामिद मदनी

लहजे और आवाज़ में रक्खा जाता है

अज़हर अदीब

क़रीब से न गुज़र इंतिज़ार बाक़ी रख

अतीक़ असर

तआरुफ़

असरार-उल-हक़ मजाज़

शरारे

असरार-उल-हक़ मजाज़

नूरा

असरार-उल-हक़ मजाज़

नुमाइश में

असरार-उल-हक़ मजाज़

मेहमान

असरार-उल-हक़ मजाज़

गुरेज़

असरार-उल-हक़ मजाज़

एक जिला-वतन की वापसी

असरार-उल-हक़ मजाज़

दिल्ली से वापसी

असरार-उल-हक़ मजाज़

अँधेरी रात का मुसाफ़िर

असरार-उल-हक़ मजाज़

आवारा

असरार-उल-हक़ मजाज़

आज भी

असरार-उल-हक़ मजाज़

आज

असरार-उल-हक़ मजाज़

तू अपने शहर-ए-तरब से न पूछ हाल मिरा

असलम महमूद

ऐ मिरे ग़ुबार-ए-सर तू ही तो नहीं तन्हा राएगाँ तो मैं भी हूँ

असलम महमूद

ख़फ़ा न हो कि तिरा हुस्न ही कुछ ऐसा था

असलम अंसारी

हर शख़्स इस हुजूम में तन्हा दिखाई दे

असलम अंसारी

राज़

आसिफ़ रज़ा

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