लौ Poetry (page 1)

यौम-ए-बर्क़

बिर्ज लाल रअना

बात बह जाने की सुन कर अश्क बरहम हो गए

शहर-ए-आलाम का शहरयार आ गया

दश्त में धूप की भी कमी है कहाँ

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

नाकामी-ए-सद-हसरत-ए-पारीना से डर जाएँ

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

है धूप कभी साया शोला है कभी शबनम

ज़ुबैर रिज़वी

जुनूँ शोला-सामाँ ख़िरद शबनम-अफ़्शाँ

ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब

पैग़ाम

ज़िया जालंधरी

हम

ज़िया जालंधरी

दूरी

ज़िया जालंधरी

शम-ए-हक़ शोबदा-ए-हर्फ़ दिखा कर ले जाए

ज़िया जालंधरी

शादाब शाख़-ए-दर्द की हर पोर क्यूँ नहीं

ज़िया जालंधरी

तन-ए-नहीफ़ से अम्बोह-ए-जब्र हार गया

ज़ेहरा निगाह

छलक रही है मय-ए-नाब तिश्नगी के लिए

ज़ेहरा निगाह

ख़ंजर चमका रात का सीना चाक हुआ

ज़ेब ग़ौरी

गर्म लहू का सोना भी है सरसों की उजयाली में

ज़ेब ग़ौरी

बुझ कर भी शो'ला दाम-ए-हवा में असीर है

ज़ेब ग़ौरी

महशरिस्तान-ए-जुनूँ में दिल-ए-नाकाम आया

ज़रीफ़ लखनवी

कमाँ पे चढ़ के ब-शक्ल-ए-ख़दंग होना पड़ा

ज़मीर अतरौलवी

पेट की आग में बरबाद जवानी कर के

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ख़ाक हम मुँह पे मले आए हैं

ज़काउद्दीन शायाँ

इश्क़ इक हिकायत है सरफ़रोश दुनिया की

ज़हीर काश्मीरी

इश्क़ और इश्क़-ए-शोला-वर की आग

ज़हीर देहलवी

बढ़े कुछ और किसी इल्तिजा से कम न हुए

ज़फ़र मुरादाबादी

हवा के साथ जो इक बोसा भेजता हूँ कभी

ज़फ़र इक़बाल

वही मिरे ख़स-ओ-ख़ाशाक से निकलता है

ज़फ़र इक़बाल

हवा बदल गई उस बेवफ़ा के होने से

ज़फ़र इक़बाल

बहुत सुलझी हुई बातों को भी उलझाए रखते हैं

ज़फ़र इक़बाल

झील में उस का पैकर देखा जैसे शोला पानी में

ज़फ़र हमीदी

ख़्वाब रंगों से बनी है याद ताज़ा

ज़फ़र गौरी

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