लौ Poetry (page 3)

एक एक क़तरा उस का शो'ला-फ़िशाँ सा है

तख़्त सिंह

दूर तक परछाइयाँ सी हैं रह-ए-अफ़्कार पर

तख़्त सिंह

शायरों का जब्र

ताबिश कमाल

कई दिन हो गए या-रब नहीं देखा है यार अपना

ताबाँ अब्दुल हई

कलाम-ए-सख़्त कह कह कर वो क्या हम पर बरसते हैं

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

क़रार दीदा-ओ-दिल में रहा नहीं है बहुत

सय्यद काशिफ़ रज़ा

निगह की शोला-फ़ज़ाई को कम है दीद उस की

सय्यद काशिफ़ रज़ा

या तो वो क़ुर्ब था या दूर हुआ जाता हूँ

सय्यद बशीर हुसैन बशीर

दिल दुखा था मिरा ऐसा कि दिखाया न गया

सय्यद बशीर हुसैन बशीर

लरज़ रहा था फ़लक अर्ज़-ए-हाल ऐसा था

सय्यद अमीन अशरफ़

कहीं शो'ला कहीं शबनम, कहीं ख़ुशबू दिल पर

सय्यद अमीन अशरफ़

शोला-ए-इश्क़ में जो दिल को तपाँ रखते हैं

सय्यद अहमद शमीम

ये क्या तिलिस्म है दुनिया पे बार गुज़री है

सय्यद आबिद अली आबिद

वाइज़-ए-शहर ख़ुदा है मुझे मा'लूम न था

सय्यद आबिद अली आबिद

ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था

सय्यद आबिद अली आबिद

सती

सुरूर जहानाबादी

बुलबुल ओ परवाना

सुरूर जहानाबादी

तेरा ग़म तेरी आरज़ू कब तक

सुल्तान अख़्तर

शनाख़्त मिट गई चेहरे पे गर्द इतनी थी

सुलेमान ख़ुमार

एक शोला सा उठा था दिल में

सूफ़ी तबस्सुम

जाने किस की थी ख़ता याद नहीं

सूफ़ी तबस्सुम

याद आती है तिरी यूँ मिरे ग़म-ख़ाने में

सुदर्शन कुमार वुग्गल

अब ख़िज़ाँ आए या बहार आए

सोज़ नजीबाबादी

शौक़ रातों को है दरपय कि तपाँ हो जाऊँ

सिराजुद्दीन ज़फ़र

शौक़ रातों को है दर पे कि तपाँ हो जाऊँ

सिराजुद्दीन ज़फ़र

वो ज़कात-ए-दौलत-ए-सब्र भी मिरे चंद अश्कों के नाम से

सिराज लखनवी

हर लग़्ज़िश-ए-हयात पर इतरा रहा हूँ मैं

सिराज लखनवी

तिरी निगाह की अनियाँ जिगर में सलियाँ हैं

सिराज औरंगाबादी

तेरी भँवों की तेग़ के जो रू-ब-रू हुआ

सिराज औरंगाबादी

सुने रातों कूँ गर जंगल में मेरे ग़म की वावैला

सिराज औरंगाबादी

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