कलाम-ए-सख़्त कह कह कर वो क्या हम पर बरसते हैं

कलाम-ए-सख़्त कह कह कर वो क्या हम पर बरसते हैं

लब उन के ला'ल हैं पर ला'ल से पत्थर बरसते हैं

बना गर क़तरा वाँ गौहर तो याँ गौहर बरसते हैं

हमारे दीदा-ए-तर अब्र से बेहतर बरसते हैं

अरक़ रुख़ का नक़ाब-ए-रुख़ से जब टपका तो हम समझे

कि मह पर छा रहा है अब्र और अख़्तर बरसते हैं

झपकना जिस ने देखा हो तिरी पलकों का वो जाने

वगर्ना कौन माने गर कहूँ ख़ंजर बरसते हैं

तमाशा देख सैलाब-ए-बहारी पर हबाबों का

उठा ला शीशा साक़ी अब्र से साग़र बरसते हैं

तिरे दर पर गदा-ओ-शह के ग़श खा खा के गिरने से

दिल-ओ-जाँ बहते फिरते हैं सर-ओ-अफ़सर बरसते हैं

सरिश्क-ए-चश्म से नाले रवाँ होते नहीं देखे

कहे कौन इस को रोना दीदा-हा-ए-तर बरसते हैं

जला ख़िर्मन तो क्या पर जो धुएँ उठते हैं ख़िर्मन से

सितम है बन के बादल किश्त-ए-दुश्मन पर बरसते हैं

मिरी हस्ती मगर फ़स्ल-ए-बहार-ए-शो'ला है 'नाज़िम'

शरर फलते हैं दाग़ उगते हैं और अख़गर बरसते हैं

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In Hindi By Famous Poet Syed Yusuf Ali Khan Nazim. is written by Syed Yusuf Ali Khan Nazim. Complete Poem in Hindi by Syed Yusuf Ali Khan Nazim. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.